योगी आदित्यनाथ के 'हमारा काम गाय बचाना है, लड़की नहीं' कहने की सच्चाई क्या है?
हमारा काम गाय बचाना है, लड़की नहीं. जैसे स्टेट पुलिस का काम बॉर्डर पर जाकर लड़ना नहीं होता है, ट्रैफिक पुलिस का काम थाने में रिपोर्ट लिखना नहीं होता है, वैसे ही एंटी रोमियो का काम रेपिस्ट विधायकों को पकड़ना नहीं होता. उनका काम बस पार्क में बैठे लड़के लड़कियों को पीटना है.
कुछ ऐसे मजमून के साथ फेसबुक पर अखबार की कतरन, कुछ टुच्ची वेबसाइट्स पर खबर और यूट्यूब पर वीडियो है, जिसमें ये जताया जा रहा है कि ये बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही हैं.
इसके मुताबिक, उन्नाव गैंगरेप के आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर पर उनसे एक सवाल पूछा गया था. इसके जवाब में CM ने ये बात कही. इन खबरों में लिखा है कि योगी आदित्यनाथ ने कहा:
सरकार में आने से पहले हमने उत्तर प्रदेश की जनता से गाय की रक्षा करने का संकल्प लिया था. हम आज भी उस पर कायम हैं. कोई नजर उठाकर किसी गाय की तरफ देखे, तो हम उसकी आंखें निकाल लेंगे. लेकिन हमने लड़की रक्षा का कोई संकल्प नहीं लिया था. अब जो संकल्प हमने लिया ही नहीं, तो उस पर हमसे सवाल क्यों पूछ रहे हो सब लोग?
खबर इतने पर खत्म नहीं होती. और भी कई बातें हैं इसमें. मसलन, बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ केंद्र सरकार की योजना है. उत्तर प्रदेश के कार्यक्षेत्र में ये नहीं आता. हमारा काम तो बस गाय बचाना है. ये भी कि ऐंटी रोमियो स्क्वायड का काम रेपिस्ट विधायकों को पकड़ना नहीं होता. उनका काम बस पार्क में बैठे लड़के-लड़कियों को पीटना होता है.
इसको पढ़ने के बाद आपका मुंह हैरानी से खुला रह जाएगा. लगेगा, कोई मुख्यमंत्री ऐसा कैसे कह सकता है? उसकी ऐसा कहने की हिम्मत कैसे हुई? आप कुछ भी सोचें, इससे पहले ये जानना जरूरी है कि क्या सच में योगी आदित्यनाथ ने ये बातें कही हैं?
इस खबर का सच क्या है?
एक वेबसाइट है. रह्यूमर टाइम्स. 10 अप्रैल को यहां एक खबर लगी. हेडिंग थी- योगी आदित्यनाथ की सफाई. कहा, हमारा काम गाय बचाना है. लड़की नहीं.
एक वेबसाइट है. रह्यूमर टाइम्स. 10 अप्रैल को यहां एक खबर लगी. हेडिंग थी- योगी आदित्यनाथ की सफाई. कहा, हमारा काम गाय बचाना है. लड़की नहीं.
सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही खबर में जो-जो बातें कही गई हैं, वो ज्यों की त्यों यहां लिखी हैं. असल में ये एक फनी साइट है. रह्यूमर टाइम्स ने तो व्यंग्य में योगी आदित्यनाथ के उच्चारण की वजह से रक्षा को ‘रक्सा’ लिखा है. वेबसाइट के ‘अबाउट अस’ सेक्शन में लिखा है:
रह्यूमर टाइम्स एक व्यंग्यात्मक वेबसाइट है. जो वास्तविक मुद्दों पर काल्पनिक खबर बनाकर व्यंग्य और हास्य के रूप में पेश करती है. इसका उद्देश्य किसी की धार्मिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है. रह्यूमर टाइम्स पर पोस्ट की गई कोई भी खबर वास्तविक नहीं होती है. कृपया इसे सच न माने.
कुछ लोगों ने बिना ये समझे कि ऊपर लिखी बातें व्यंग्य में लिखी गई हैं, इसे सच मान लिया. और फिर इसे शेयर करने लगे. हमने रह्यूमर टाइम्स की फेसबुक टाइमलाइन देखी. वैसे उनकी पोस्ट्स को बहुत ज्यादा शेयर नहीं मिलते. लेकिन इस वाली खबर को डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों ने शेयर किया है. जाहिर है, लोग व्यंग्य समझ नहीं पाए. कई लोगों ने तो इनकी फेसबुक पोस्ट पर भी नाराजगी में कमेंट किया है. कुछ लोग योगी की आलोचना भी कर रहे हैं. कुछ मुख्यमंत्री का बचाव कर रहे हैं.
रह्यूमर टाइम्स से लेकर कई लोगों ने इसे अपने-अपने यहां लगा दिया. जैसे एक MN न्यूज है. उसने भी इसे ज्यों का त्यों लगाया. ऊपर हेडिंग दी- योगी आदित्यनाथ का फिर गैर-जिम्मेदाराना बयान. नीचे सब हेडिंग लिखी- कहा हमारा काम गाय बचाना है, लड़की नहीं. इसे सिर्फ पागलपन का दौरा ही कहा जा सकता है.
एक पेपर ने भी छाप दिया
हद तो तब हुई जब हमें एक न्यूज पेपर की कटिंग दिखी. हिंदी पेपर की कटिंग. उसमें भी ये खबर हू-ब-हू छपी थी. कौन सा अखबार है, ये मालूम नहीं चल पाया. इसकी हेडिंग है,
हद तो तब हुई जब हमें एक न्यूज पेपर की कटिंग दिखी. हिंदी पेपर की कटिंग. उसमें भी ये खबर हू-ब-हू छपी थी. कौन सा अखबार है, ये मालूम नहीं चल पाया. इसकी हेडिंग है,
योगी आदित्यनाथ का फिर गैर-जिम्मेदाराना बयान. कहा, हमारा काम गाय बचाना है. लड़की नहीं.
आमतौर पर कोई अखबार जब ऐसा व्यंग्य छापता है, तो वहां कुछ ऐसी तस्वीर, कैरिकेचर, इमोजी या फिर कॉलम का नाम होता है जिससे पता चलता है कि वो व्यंग्य है, लेकिन अखबार की धुंधली तस्वीर में भी ऐसा कुछ नजर नहीं आता.
इतने संवेदनशील मुद्दे पर इतनी लापरवाही?
अखबार वगैरह भी ऐसी गलती करेंगे? खबर लिखते समय टाइपो हो जाना या मात्राओं की गलती, तो फिर भी समझ आती है. लेकिन एक व्यंग्य को तथ्य समझने की भूल को क्या कहा जाए? फिर उसकी जांच किए बिना, उसे परखे बिना छाप देना, ये तो ब्लंडर है. जर्नलिज्म की बुनियादी सीख के खिलाफ है. और कुछ नहीं, तो जरा सा गूगल सर्च ही कर लेते. अगर योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कहा होता, तो टीवी कम से कम अपना पूरा एक दिन इस पर खर्च कर चुका होता. सोचिए. इतने संवेदनशील मुद्दे पर कैसी लापरवाही बरती जा रही है!
अखबार वगैरह भी ऐसी गलती करेंगे? खबर लिखते समय टाइपो हो जाना या मात्राओं की गलती, तो फिर भी समझ आती है. लेकिन एक व्यंग्य को तथ्य समझने की भूल को क्या कहा जाए? फिर उसकी जांच किए बिना, उसे परखे बिना छाप देना, ये तो ब्लंडर है. जर्नलिज्म की बुनियादी सीख के खिलाफ है. और कुछ नहीं, तो जरा सा गूगल सर्च ही कर लेते. अगर योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कहा होता, तो टीवी कम से कम अपना पूरा एक दिन इस पर खर्च कर चुका होता. सोचिए. इतने संवेदनशील मुद्दे पर कैसी लापरवाही बरती जा रही है!
हमसे हमारे एक पाठक श्रीश अवस्थी ने इस अखबार की कटिंग का सच पता करने को कहा था. अगर आपको भी किसी वायरल हो रही तस्वीर, वीडियो या खबर पर शक हो, तो उसकी बाबत lallantopmail@gmail.com पर मेल करके पूछ सकते हैं
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