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वायनाड का जीवन संघर्ष

 वायनाड का जीवन संघर्ष

आलेख : बृंदा करात 



उस छोटी सी लड़की की मुस्कान ऐसी है कि वह सबसे अंधेरी जगह को भी रोशन कर सकती है। अपने छोटे हाथों को फैलाते हुए वह हम तीन अजनबियों, पी.के.श्रीमती, सी.एस. सुजाता और मुझसे, इस तरह  अभिवादन करती है, जैसे कि वह हमें पहचान7 हो। हम वायनाड त्रासदी के प्रभावित परिवारों से मिलने के लिए मेप्पडी में हैं। दो महीने बाद भी, आघात इतना गहरा है कि हम जिन बचे हुए लोगों से मिले, उनमें से कोई भी 30 जुलाई की रात की भयावहता के बारे में नहीं बोलना चाहता या फिर इस बारे में कि वे कैसे बच गए। सीपीआई (एम) क्षेत्रीय समिति के सचिव कॉ. हारिस उन सभी प्रभावित परिवारों के साथ नियमित संपर्क में हैं, जिन्हें प्रमुख प्रभावित क्षेत्रों - चूरामाला, मुंडक्कई, पुंजरीमट्टम और अन्य - से मेप्पडी में स्थानांतरित किया गया है। वह और अन्य स्थानीय कॉमरेड बताते हैं कि उस रात क्या हुआ था -- भारी बारिश, रात 2 बजे ताबड़तोड़ जरूरी कॉल, विनाशकारी भूस्खलन, कीचड़ और दलदल, पत्थरों और चट्टानों में बचे लोगों की तलाश आदि। जबकि अन्य सुर्खियां लोगों का ध्यान खींचती हैं, यहां वायनाड में राज्य सरकार और पार्टी अभी भी प्रभावित परिवारों की मदद के लिए चौबीसों घंटे काम कर रही है। कॉमरेड श्रीमती और सुजाता जनवादी महिला समिति की इकाईयों द्वारा एकत्रित सामग्री लेकर पहले भी राहत शिविरों में आ चुकी हैं। मैं इस बार इन दोनों साथियों के साथ प्रभावित परिवारों के साथ समय बिताने और जीवन  को संभालने के लिए बचे हुए लोगों द्वारा, राज्य सरकार द्वारा और स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे अथक प्रयासों को समझने के लिए आई हूं। त्रासदी और निराशा में, मेरे लिए यह देखना एक प्रेरणादायक अनुभव था कि टीवी कैमरों और प्रचार से दूर रहते हुए, कैसे कम्युनिस्ट मानवता और प्रतिबद्धता के साथ लोगों के जीवन में बदलाव लाते हैं। मैंने प्रभावित परिवारों के साथ सीधे बातचीत के माध्यम से सीखा कि कैसे एलडीएफ सरकार के व्यापक सर्वसमावेशी दृष्टिकोण ने मानवीय सहायता का ढांचा खड़ा किया है। 


इस बच्ची का नाम नायसा है और वह सिर्फ तीन साल की है। ''वह हमारे परिवार के लिए एक अप्रत्याशित उपहार थी,'' बच्ची की मां जसीला हमें बताती है, ''वह अपने भाईयों के कई साल बाद पैदा हुई थी।'' अपने बेटों का जिक्र करते हुए वह रो पड़ती है और बोल नहीं पाती। एक साथी आगे बताती है : यह परिवार चूरामला में अपने खुद के घर में रहता था, जो भूस्खलन के केंद्रों में से एक है। उसका पति और उसके दो बेटे, जिनमें से एक 16 साल का और दूसरा 12 साल का था, और उसके पति के माता-पिता सहित उसके परिवार के छह सदस्य मारे गए। अपनी छोटी बेटी को गले लगाते हुए जसीला कहती है — ''अब यह मेरे पास है, सिर्फ यही।" वे जसीला की मां जमीला के साथ किराए के मकान में रह रहे हैं। मैं हैरान थी कि नायसा क्यों जानी-पहचानी लग रही है। श्रीमती ने मुझे बताया कि यह वही छोटी बच्ची थी, जो वायनाड राहत शिविर के दौरे पर प्रधानमंत्री के पास हंसी-खुशी से गई थी तथा उनके चश्मे के साथ खेलते हुए उसका एक  वीडियो भी बनाया गया था। इस वीडियो को वायरल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि प्रधानमंत्री को उनकी कितनी परवाह है। क्या वीडियो लाइट बंद होने के बाद उन्हें कभी भी इस छोटी बच्ची की याद आई? या फिर वायनाड की ही? क्या उन्हें भावनात्मक तनाव की सीमा का भी एहसास है? 


जिन लोगों से हम मिले, उनमें 12 परिवारों के जीवित बचे लोग थे, जिन्होंने कुल मिलाकर 70 सदस्यों को खो दिया था। जिन माताओं ने अपने बच्चों को खो दिया है, उनका साहस और सम्मान जितना दिल दहला देने वाला था, उतना ही चौंकाने वाला भी था। 30 साल की एक युवा महिला सयाना अपने पति अनीश से अपने तीन प्यारे बच्चों, मिवेद, ध्यान और ईशान, के नाम बताने के लिए कहती है। वह कहती है, "वे छोटे थे, बहुत छोटे थे। सबसे बड़ा 9 साल का, दूसरा 7 साल का और सबसे छोटा, मेरा ईशान, सिर्फ 4 साल का। लेकिन वे नहीं बचे।हम कैसे बचे, हमें नहीं पता।" उसके सिर और माथे पर चोटों के निशान हैं, जिसके लिए उसे सर्जरी करानी पड़ी है और जो अभी भी ठीक हो रही है। उनके पति अनीश जो पेशे से ड्राइवर थे, अपने बच्चों के अलावा अपने माता-पिता और अपने चाचा और चाची सहित उन्होंने अपने परिवार के सात सदस्यों को खो दिया है। अब पति-पत्नी, अपने प्रियजनों के बिना, हर आने वाले दिन का सामना करने में एक-दूसरे की मदद करते हैं।


सायना से सटकर एक छोटा लड़का बैठा है, जो अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों से उसे गौर से देख रहा है। जब मैं उसके पास जाती हूं, तो वह मुझे एक चमकदार मुस्कान देता है। वह नौ साल का लड़का अविगत है। उसके चेहरे और सिर पर गंभीर चोटों के निशान हैं। उसके माथे की त्वचा अभी तक ठीक नहीं हुई है। उसके बायें हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है। वह भूस्खलन के दलदल में पाया गया था, बमुश्किल जीवित। कोझिकोड के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां समर्पित डॉक्टरों ने उसकी जान बचाई। उसकी तस्वीर, जिसमें वह मुश्किल से पहचाना जा सकता था, उसके परिवार का पता लगाने के लिए प्रसारित की गई। बचाई गई सायना को बताया गया कि ऐसा ही एक बच्चा मिला है। उसे उम्मीद थी कि यह बच्चा उसका ही होगा। लेकिन जब उसने तस्वीर देखी, तो उसने अनुमान लगाया कि बच्चा कौन हो सकता है। वे एक ही गांव में रहते थे, बच्चे साथ-साथ खेलते थे। अविगत की मां रमिया बहुत दूर पाई गई। उसके फेफड़े मिट्टी से बुरी तरह प्रभावित थे, उसका कंधा और पसलियां टूट गई थीं, उसका पैर टूट गया था। उसे भी तुरंत चिकित्सा सहायता मिली और वह अपनी गंभीर चोटों के बावजूद बच गई। उसने अपने बेटे को पा लिया। उसके पति महेश, उसके माता-पिता और एक अन्य रिश्तेदार की मृत्यु हो गई -- छह लोगों के परिवार में से सिर्फ़ दो ही जीवित बचे हैं।


हमने रेजिना से मुलाकात की, जो नगरपालिका में कार्यरत है। उसने अपने पति और दोनों बच्चों को खो दिया है। चूरामाला में साथ रहने वाले उसके आठ सदस्यीय परिवार में से केवल रेजिना और उसका एक भतीजा ही जीवित बचे हैं। रेजिना गंभीर रूप से घायलों में से एक थी। उसे सर्जरी की आवश्यकता थी और अब उसके माथे पर घाव भरते हुए देखे जा सकते हैं। वह अपनी बहन के साथ रहती है। वह काम पर वापस जाना चाहती है, लेकिन कहती है कि उसे किसी से बात करने में कठिनाई होती है। वह कहती है कि उसे समय चाहिए, यद्यपि वह जानती है कि अपने परिवार को खोने के आघात को समय ठीक नहीं कर सकता।


और उन बच्चों का क्या, जो अपने पूरे परिवार को खोने के बाद बच गए हैं? हम साजिद यूसुफ से मिलते हैं, जो एक 15 वर्षीय किशोर है, पतला और कमजोर। वह कक्षा 10 का छात्र है और चुलियोद गांव में रहता था। उसने अपना पूरा परिवार, अपने माता-पिता, अपनी दो बहनों और अपने दादा-दादी को खो दिया है। लड़का धीरे से बोलता है। "मैं अपनी बुआ सानिया के साथ रह रहा हूं, जो मेरे पिता की बहन है। वह भी गमगीन है, क्योंकि उसने अपने दो भाइयों, मेरे पिता और उनके छोटे भाई को खो दिया है। मुझे एक स्कूल में दाखिला मिल गया है, लेकिन मुझे पढ़ाई करने में मुश्किल होती है।" वह दूसरी ओर देखता है और फिर कहता है, "मुझे अपनी बहनों, अपनी मां और पिता की याद आती है, मैं उनके बारे में सोचता हूं, लेकिन मैं अपना रोना रोकने की कोशिश करता हूं।" स्नेहा 22 वर्ष की है, जो उसकी बातें ध्यान से सुन रही है। वह उसके दुख को समझती है। चार्टर्ड अकाउंटेंसी की छात्रा स्नेहा उस सप्ताह अपने गांव चूरीमाला से दूर अपनी परीक्षा की पढ़ाई कर रही थी। उनका नौ सदस्यीय परिवार तीन घरों के समूह में एक दूसरे के करीब रहता था। उसके परिवार के नौ सदस्य मारे गए, जिनमें उसके माता-पिता और दो भाई भी शामिल हैं। परिवार में कोई भी जीवित नहीं बचा। उसकी एक बड़ी बहन यूके में नर्स के रूप में काम करती है। यह साहसी युवती वर्तमान में अपनी मौसी के साथ रह रही है और अपनी परीक्षा पूरी करने की कोशिश कर रही है। फिर छह साल की एक छोटी लड़की, सिदारते मुन्ता, अपनी मौसी की गोद में है। बच्ची ने अपने माता-पिता, दादा-दादी को खो दिया है और अपने सात सदस्यीय परिवार में केवल वह ही बच पाई है। जिष्णु 25 साल का है। वह सऊदी अरब में काम करता है और अपने परिवार को पैसे भेजता है, जो मुंडकाई के पुंजिरत्तम में रहते थे। यह वह गांव है, जो पहाड़ी की चोटी पर था और जहां से भूस्खलन शुरू हुआ था। उसने अपने परिवार के नौ सदस्यों को खो दिया, जिसमें उसके माता-पिता और भाई-बहन शामिल थे। केवल उसका छोटा भाई, जिसे रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी, बच गया। एक अन्य युवक, प्रणव, जो एक रिसॉर्ट में काम करता था, उस रात मुंडकाई में अपने घर से बाहर था। वह आठ सदस्यीय परिवार में एकमात्र जीवित व्यक्ति है।


ये बचे हुए लोग उन कई अन्य परिवारों में से हैं, जिनसे हम मिले हैं -- वे सभी अपने प्रियजनों और अपने जीवन में सब कुछ खोने के दुख और आघात से निपट रहे हैं। वे  अपने जीवन को फिर से ढर्रे पर लाने के काम में लगे हैं।  यह वह संदर्भ है, जिसमें केरल सरकार और वहां के लोगों ने दिखाया है कि देश के बाकी हिस्सों के लिए केरल मॉडल क्यों है। जैसा कि सबको ज्ञात है और दस्तावेजों से पुष्ट है, 30 जुलाई की त्रासदी के तत्काल बाद अगले दिन से ही आधिकारिक एजेंसियां और स्वयंसेवक बचाव कार्यों में लग गए थे। परिवारों की मदद और बचाव के लिए राजनीतिक दलों में एकजुटता थी। 9000 से अधिक प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया था। उनमें से कई, जिनके घर नष्ट नहीं हुए थे,  वे कुछ हफ्तों के बाद घर जा चुके है। राज्य सरकार ने चार कैबिनेट मंत्रियों की एक टीम नियुक्त की थी, जो एक महीने तक वायनाड में रही, निगरानी और जरूरतों  का आकलन करने और समन्वय करने में उसने मदद की। मंत्रियों के मौके पर किए गए इस हस्तक्षेप के कारण ही विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप संभव हो सका तथा भविष्य की आवश्यकताओं का आकलन संभव हो सका।


यह महत्वपूर्ण है कि 2018 में बाढ़ आने के अनुभव के बाद, एलडीएफ सरकार ने सभी पंचायतों में आपदा प्रबंधन दल का गठन किया था -- जिसमें स्थानीय निकाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ-साथ आधिकारिक एजेंसियों और नागरिक स्वयंसेवकों का संयोजन था। इन आपदा दलों के पास सभी प्राकृतिक आपदा समस्याओं से निपटने के लिए संचार के लिए समर्पित व्हाट्सएप समूहों के माध्यम से अपना स्वयं का नेटवर्क है। वायनाड में भी, ये दल सबसे पहले मौके पर पहुंचे। राहत शिविरों में परिवारों को उनकी तत्काल जरूरतों के लिए आधिकारिक एजेंसियों द्वारा आपूर्ति किए गए भोजन और अन्य सामग्रियों से मदद की गई। राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों से उदारतापूर्वक दान मिला। बहरहाल, परिवार अपना खुद का स्थान चाहते थे। यहीं पर, सरकार द्वारा बचे लोगों के साथ घनिष्ठ बातचीत के बाद उनकी जरूरतों का आकलन करने के फैसले काफी सराहनीय हैं। कुडुम्बश्री समूहों ने भी ऐसे आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में, जिसका नेतृत्व एक महिला कलेक्टर कर  रही थी और जिन्होंने सभी प्रकार के आपदा प्रबंधन के  कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 250 कुडुम्बश्री महिला कार्यकर्ताओं ने 1009 परिवारों का सर्वेक्षण किया और उनकी वर्तमान स्थिति और जरूरतों के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की। इस डेटा का उपयोग प्रत्येक प्रभावित परिवार के लिए सूक्ष्म नियोजन के लिए किया जा रहा है।


इस प्रकार सरकार ने निर्णय लिया कि सभी बचे हुए लोगों को किराए के आवास के लिए धन के प्रावधान के माध्यम से अपने स्वयं के स्थान पर रहने का अवसर दिया जाना चाहिए। यह एलडीएफ सरकार का सबसे संवेदनशील दृष्टिकोण है, अन्य स्थानों के विपरीत, जहां लोगों को महीनों तक राहत शिविरों में रहना पड़ता है। प्रत्येक परिवार को किराए के रूप में हर महीने 6000 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। बड़ी संख्या में बचे हुए लोगों को राहत शिविरों से ऐसे किराए के स्थानों में जाने में सक्षम बनाया गया है। वे परिवार, जो रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं, वे भी किराया सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। हमने पाया कि प्रभावित क्षेत्र के करीब वायनाड के विभिन्न इलाकों के लोग बचे हुए लोगों को घर उपलब्ध कराने में उदार और दयालु रहे हैं। हम जिन बचे हुए लोगों से मिले, उनमें से अधिकांश बागान मजदूरों, कृषि मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों या ड्राइवरों, वेल्डर, बढ़ई और मजदूर वर्ग के परिवारों के थे। हमें पीड़ितों ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने नियमित रूप से उनके घरों में जाकर उनसे मिलने के लिए प्रशिक्षित परामर्शदाताओं को नियुक्त किया है। यह भी काफी अनोखा प्रयास है। आमतौर पर आपदा के पीड़ितों को ही इलाज के लिए अस्पतालों में जाने की उम्मीद होती है, लेकिन यहां सरकार घर-घर जाकर उनका इलाज कर रही है। इसके अलावा कुदुम्बश्री के सदस्य भी नियमित रूप से परिवारों की मदद करने के लिए घरों में जाते हैं।


प्रत्येक प्रभावित परिवार के दो वयस्क सदस्यों को प्रतिदिन 300 रुपये की सहायता मिल रही है, जो कि 18,000 रुपये प्रति माह बनती है। यह सरकारी राहत उपायों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि वर्तमान में अधिकांश सदस्य अभी भी काम करने में असमर्थ हैं। उन्होंने हमें बताया कि यह केवल इस सरकारी दृष्टिकोण के कारण है कि वे जीवित रहने में सक्षम हैं। घायलों को मुफ्त चिकित्सा उपचार के अलावा अतिरिक्त वित्तीय सहायता मिल रही है। मुंडाकई में सरकारी निम्न प्राथमिक विद्यालय और वेल्लारमाला में उच्चतर माध्यमिक सरकारी विद्यालय नष्ट हो गए हैं। इससे लगभग 600 छात्र प्रभावित हुए हैं। प्रत्येक बच्चे को वर्दी और किताबें प्रदान की गई हैं। उन्हें स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया है और उनके परिवहन के लिए तीन सरकारी बसें समर्पित की गई हैं।


अभी भी बहुत से निवासी "लापता" हैं। इसका मतलब है कि शव नहीं मिले हैं, जिससे जीवित परिवार के सदस्यों पर भावनात्मक तनाव बढ़ गया है। डीएनए रिपोर्ट के माध्यम से परिवार के कनेक्शन को स्थापित करने के लिए शवों की पहचान करना सबसे कठिन कामों में से एक है। भूस्खलन इतना भयंकर था कि कई मामलों में शवों के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। हम उन बचे हुए लोगों से मिले, जो डीएनए रिपोर्ट और अपने प्रियजनों के शवों या शरीर के अंगों की पहचान का इंतजार कर रहे हैं। यहां भी सरकार और खासकर स्वास्थ्य और फोरेंसिक विभाग डीएनए नमूनों का मिलान करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। शवों की ऐसी पहचान के साथ-साथ परिवारों के लिए भावनात्मक तनाव का एक कानूनी पहलू भी है क्योंकि आपदा प्रबंधन के नियमों के अनुसार प्रत्येक मृतक के लिए आठ लाख रुपये का मुआवजा केवल पहचान की पुष्टि के बाद ही दिया जा सकता है। अभी भी ऐसे परिवार हैं, जिन्हें मुआवजा नहीं मिला है, क्योंकि डीएनए प्रक्रिया चल रही है। जिन नाबालिगों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, उन्हें दस लाख मिलेंगे।


ये कुछ ऐसे तात्कालिक उपाय हैं, जो राज्य सरकार द्वारा उठाए जा रहे हैं। दीर्घकालिक योजना दो टाउनशिप बनाने की है, जहाँ हर उस परिवार को घर मुहैया कराया जाएगा, जिसने अपना घर खो दिया है। भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को इन टाउनशिप में सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाएगा और इसके लिए भूमि की पहचान पहले ही कर ली गई है। बुनियादी सुविधाओं, स्कूलों और अस्पतालों की भी योजना बनाई गई है। जबकि राज्य सरकार वायनाड में प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, केंद्र सरकार ने वायनाड के लोगों के साथ विश्वासघात किया है।


वायनाड पहुंचने से एक दिन पहले हमें बताया गया कि केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के लिए आपदा राहत कोष में केंद्र के योगदान की घोषणा की है। महाराष्ट्र को 1492 करोड़ रुपए मिले; आंध्र प्रदेश को 1036 करोड़; असम को 716 करोड़; बिहार को 655.60 करोड़; गुजरात को 600 करोड़ और केरल को सिर्फ़ 145.60 करोड़ रुपए। यह राक्षसी सरकार ही हो सकती है, जो राहत के नाम पर राजनीति करते हुए इस तरह का संकीर्ण रवैया अपनाए। राज्य सरकार ने 2000 करोड़ रुपए मांगे थे। यह केरल और हर परिवार के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूडीएफ के केरल से 19 सांसद हैं, लेकिन संसद में इस मुद्दे पर उनकी तरफ़ से चुप्पी ही रही है।


हमें पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने का मौका मिला, जो आपदा की रात से ही बचाव और राहत कार्यों में शामिल थे और जो प्रभावित परिवारों के साथ अपना काम जारी रखे हुए हैं। प्रभावित क्षेत्रों में चूरामाला स्थानीय समिति के सचिव कॉ. बैजू हैं। वहां शाखा सचिव कॉ. अब्बास हैं। मुंदकई में शाखा सचिव कॉ. राशिद हैं। इस समय पूरे भारत में पार्टी सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। एक सक्रिय शाखा और शाखा सचिव का महत्व इन साथियों द्वारा किए गए जबरदस्त काम से पता चलता है। उनकी मदद डीवाईएफआई नेता और पार्टी क्षेत्रीय समिति के सदस्य कॉ. फ्रांसिस ने की, जिन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर अग्रणी भूमिका निभाई। जनवादी नौजवान सभा की स्थानीय इकाइयों ने भी जबरदस्त काम किया है। डीवाईएफआई के पास एक "युवा ब्रिगेड" है, जिसे संकट के समय मदद और बचाव, प्राथमिक चिकित्सा आदि में बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त है। उनके कार्यालयों में आवश्यक सामग्री भी है - रस्सी, मशालें, यहां तक कि पोर्टेबल मोटर कटिंग मशीनें भी, जो उस भयानक रात में काम आईं।


हमने उनकी कहानियां बहुत ही तथ्यात्मक तरीके से और बिना किसी आत्म-गौरव के सुनीं कि कैसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ समन्वय किया, कितने परिवारों को वे बचा पाए, शवों को खोजने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा, सरकार का मार्गदर्शन आदि। हम समझ गए कि उन्होंने खुद को कितना जोखिम में डाला था -- वे नायक हैं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं और साथ ही उन सभी स्वयंसेवकों पर भी, जिन्होंने उनके साथ काम किया है। मुझे लगता है कि यह समुदाय आधारित एकजुट काम की सही झलक है, जो केरल का प्रतीक है -- युवा पुरुष, जिनके नाम अलग-अलग धार्मिक समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं -- सभी पार्टी और नौजवान सभा सभा द्वारा लोगों की सेवा करने के लिए प्रेरित एकजुट इच्छा के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वायनाड में पार्टी द्वारा सभी स्तरों पर किया जा रहा काम पूरी पार्टी के लिए प्रेरणास्पद है।

आलेख : बृंदा करात, अनुवाद : संजय पराते

बृंदा करात माकपा पोलिट ब्यूरो की सदस्य तथा महिला आंदोलन की अग्रणी नेता हैं। अनुवादक अ. भा. किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।




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